मैं हूँ स्वास्थ्यप्रहरी
धपहली बात-हम सब जानते हैं कि हमारी देह का निर्माण (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) पञ्चतत्व से हुआ है और मृत्यु के उपरांत इन्हीं तत्वों में विलीन हो जाता है। ये पंचतत्व हमारे पर्यावरण के पर्याय एवं प्रतीक हैं। पंचतत्वों से निर्मित जड़ एवं चेतन पदार्थ-वनस्पति और प्राणी हमारे पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। किसी भी एक तत्व के दूषित होने पर पर्यावरण असंतुलित हो जाता है एवं प्राणीमात्र पर कुप्रभाव पड़ता है। अत: स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन के लिए इन तत्वों को स्वच्छ, पवित्र, प्रदूषणमुक्त एवं उनका समुचित संतुलन बनाये रखना आवयश्यक है। प्रकृति का अनियंत्रित दोहन वातावरण में असंतुलन उतपन्न कर विनाश का तथा प्राकृतिक आपदाओं का हेतू बन जाता है। प्रकृति का यह नियम है कि पर्यावरण में सजीव एवं निर्जीव तत्वों का संतुलन प्राकृतिक शक्तियों द्वारा बना रहता है। जब यह संतुलन किसी कारण बिगड़ जाता है या नष्ट हो जाता है तो हमारा कर्त्तव्य है कि उस संतुलन को हम फिर से स्थापित करें। दूसरी बात-जब स्वभावत: शुध्द वायु, जल देश तथा काल विकृत हो जाते हैं, तब विभिन्न प्रकृति के मानवों का देह, आहार, बल, मन, अवस्था समान होने पर भी एक साथ एक ही समय एक ही रोग से नगरों और जनपदों का देखते-देखते विनाश हो जाता है। वैश्विक महामारी 'कोविड-19' ने यह साबित कर दिखाया है। अब समय है-सजगता का। स्वयं को बदलने का। प्रकृति और प्रकृति की महत्ता को समझने का। मानव-जीवन और प्रकृति की घनिष्ठता के रहस्य को जानने-समझने का। अब तो समय आ ही गया प्रकृति से नाता जोड़ने का सेहत के प्रति सजग रहने का यानि 'स्वास्थ्य-प्रहरी' बनने का। आइये 'आयुष्य मंदिरम ट्रस्ट' द्वारा चलाये गए 'मैं हूँ स्वास्थ्यप्रहरी' प्रशिक्षण अभियान में शामिल होकर खुद को, अपने परिवार को, अपने आसपास के समाज को एवं देश-प्रदेश को स्वस्थ, खुशहाल और समृद्ध बनाने में दिल से सहयोग करें। तीसरी बात-स्वस्थ जीवनशैली को जीवन में धारण करना। हविष्यान्न की आहुति पाकर कडुआ धुआँ भी मीठा और सुगन्धियुक्त हो जाता है तथा संखिया-जैसा भयानक विष भी संशोधन करने पर औषध बन जाता है और समुद्र का खारा जल भी सूर्य की किरणों का संस्पर्श पाकर मधुरिमा में बदल जाता है-इसी प्रकार सदाचार-सद्विचार और समता आदि के अनुपालन से कष्ट एवं क्लेशकारक मूढ़ चित्तवृत्तियों का भी शमन हो जाता है तथा आरोग्य-आयु, स्वस्थ, सशक्त, शांत वृत्तियों का स्फुरण और जागरण होने लगता है। यदि हम असत से सत की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर बढ़ना चाहते हैं, यदि हम निर्बल-दुर्बल, हताश-निराश-उदास मानव-जीवन में सद्य: एक नयी ज्योति, नयी जागृति, नयी उमंग, नयी तरंग लाना चाहते हैं तब तो हमको बिना ननु-नच, बिना अगर-मगर, बिना किन्तु-परन्तु का संदेह प्रकट किये, पूर्ण निष्ठा के साथ सदाचार-सद्विचार से परिपूर्ण आयु-आरोग्यवर्धक खान-पान, आचार-विचार, संयम-साधना, भाषा-भाव, सभ्यता-संस्कृति को अपनाना ही होगा। । जागो और जगाओ। स्वास्थ्यप्रहरी बनो। जागो और जगाओ। स्वास्थ्यप्रहरी बनो।