एपिसोड 22: स्टरलाइट कांड, कैराना उपचुनाव, बंगलुरु में विपक्ष का जमावड़ा व अन्य

उत्तरा प्रदेश के कैराना में होने वाला लोकसभा का उपचुनाव, एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में लगा विपक्षी नेताओं का मजमा, तमिलनाडु के तूतीकोरिन इलाके में वेदांता के स्टरलाइट कॉपर प्लांट में मजदूरों पर की गई पुलिस की फायरिंग, म्यामांर में रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी द्वारा की गई हिंदुओं की हत्या पर आई एमनेस्टी इंटरनेशन की रिपोर्ट और सूचना प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर द्वारा शुरू किया गया फिटनेस संबंधी चैलेंज इस बार की चर्चा के मुख्य विषय रहे.चर्चा की विशिष्ट अतिथि रही राज्यसभा टीवी और एनडीटीवी की पूर्व एंकर और हिंद किसान चैनल की पत्रकार अमृता राय. साथ में न्यूज़लॉन्ड्री के मैनेजिंग एडिटर रमन किरपाल, और न्यूज़लॉन्ड्री संवाददाता अमित भारद्वाज फोन पर कैराना से कार्यक्रम में जुड़े. कार्यक्रम का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्थित वेदांता की स्टरलाइट तांबा फैक्ट्री का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर की गई पुलिस फायरिंग में 11 लोगों की मौत पर विस्तार से बात हुई. शुरुआत में अतुल चौरसिया ने कहा, “यह विवाद स्टरलाइट के विस्तार की कार्रवाई से बढ़ा. यहां पहले से ही सालाना चार लाख टन तांबे का शोधन हो रहा है जिसे बढ़ाकर सालाना आठ लाख टन करने की हरी झंडी सरकार ने दे दी थी. इस पर वहां के ग्रामीणों ने विरोध करना शुरू किया. ग्रामीणों का आरोप है कि तूतीकोरिन इलाके में की पूरी आबोहवा जहरीली हो चुकी है. सांस लेना भी दूभर है. दूसरी तरफ अंडरग्राउंड जल के सभी स्रोत भी बुरी तरह से प्रदूषित हो चुके हैं.”इस पर अमृता राय ने विस्तार से अपनी बात रखते हुए कहा, “सबसे पहले 1992-93 में यह कारखाना महाराष्ट्र के रत्नागिरी में लगाने की कोशिश हुई थी जिसका बड़े पैमाने पर विरोध हुआ. आखिरकार 1993 में मजबूरन इसे तमिलनाडु में लगाया गया. जिस इलाके में यह कारखाना लगा हुआ है वहां हवा से लेकर पानी तक सब कुछ प्रदूषित हो गया है. हमने पाया कि 1994 में ही इस इलाके से सटे खेतों में काम करने वाली महिलाएं बीमार होकर गिर गई थीं. न्यूज़मिनट की एक ख़बर में मैंने पढ़ा कि शुरुआत में इस फैक्ट्री को सालाना 70,000 हजार टन तांबा शोधन करने की अनुमति थी. लेकिन शुरू से ही इसमें निर्धारित सीमा से ज्यादा तांबे का शोधन होता रहा. अब इस इलाके में लोगों के बीमार होने, जल प्रदूषण के 25 से ज्यादा वाकए हो चुक हैं. टीवी पर एक रिपोर्ट में देखा कि एक आदमी के फेफड़े पूरी तरह से सूख गए हैं, एक छोटी बच्ची थी जिसके सिर से बाल उड़ गए थे. ये तो कुछेक घटनाएं थी जो हम जानते हैं. इस इलाके में इस तरह के अनगिनत पीड़ित होंगे.”वो आगे कहती हैं, “शुरुआत से ही इस कारखाने का बुरा अअसर लोगों के ऊपर दिखने लगा था, इसके बावजूद यह चलता रहा. बीच में 2013 में ऐसी भी स्थिति आई जब फैक्ट्री में रिसाव हुआ और बड़े पैमाने पर लोग बीमार हो गए, तब इस फैक्ट्री को बंद करना पड़ा था. लेकिन बाद में कानूनी दांवपेंच में उलझा कर इसे फिर से शुरू कर दिया गया. यह भी अपने आप में चिंताजनक है कि लोग वहां पिछले 100 दिनों से विरोध कर रहे थे. यहां मीडिया के ऊपर भी सवाल खड़े होते हैं. क्यों यह मुद्दा पहले चर्चा में नहीं आया.”रमन किरपाल ने पुलिस की कार्रवाई और सिस्टम के कामकाज पर रोशनी डाली. उन्होंने कहा, “वेदांता कंपनी किस-किस को चंदा देती है. इसमें भाजपा भी है, कांग्रेस भी है. इस तरह से यह एक पूरा नेक्सस बन जाता है. यह एक संगठित सिस्टम है जो कभी रुकता नहीं. दूसरी बात पुलिस रूल में साफ-साफ लिखा है कि उसे बहुत दर्लभ मौकों पर ही गोली चलानी है. वो भी हमेशा कमर के नीचे. फिर भी पुलिस नहीं मानी. आप कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल करते हैं, यहां क्यों नहीं कर सकते.”अपना एक संस्मरण सुनाते हुए रमन ने कहा, “1994 के मुजफ्फरनगर चौराहा हत्याकांड में आरोपी आईएएस अधिकारी को सीबीआई जांच से बचाने के लिए खुद मुलायम सिंह यादव ने अंड़गा लगाया और उसके खिलाफ जांच का आदेश नहीं दिया. हमारे देश का सिस्टम ही ऐसा है कि यहां एक हद से ज्यादा कुछ होता नहीं है.” See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.

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