आज फिर से बसंत आया था
(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है !फिर से बसंत आया आज फिर से बसंत आया था साथ पुरानी यादे लाया था आज फिर से बरसात हुई थी बसंत कि शुरुआत हुई थी पिछले बसंत जब तुम आयी थी तब भी तो बरसात हुई थी याद है या फिर भुल गई तुम अपनी कितनी बात हुई थी आज बसंत वापस आया था अपनी कुछ यादे लाया था यादो मे तुम फिर आयी थीकितनी तुम खुशिया लाई थी घाट आज भी जगमग ही थे दशास्वमेघ पर बैठे हम थे शाम हुई फिर शुरु आरती थी खोजा मगर आज ना तुम थी लोग जलाते रहे जो दिपक यादों मे खो गये तुम तब तक मै फिर उदास वापस आया था समय को लेकर पछताया था वक्त भी जो गुजर चुका था शहर भी अपना बदल चुका था हाथ ना कुछ लगने वाला था बसंत भी अब बदल चुका था