बसंत कि मुलाकत
(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है !बसंत कि मुलाकत एक बात बताओ क्या तुम आयी थी !बीते बसंत कि खुशियाँ फिर से लाई थी !!सुना अशोका मे आज प्लेसमेंट हुआ था !नौकरी के चक्कर मे तुम कालेज आयी थी!!सुना है झोली भरके तुम खुशियाँ लाई थी!इंतजार करते करते पतझड बीच चुका था!!बसंत के आने मे अब तो देर नही थी!तुमको कोई और मिला था क्या इस बसंत मे !!क्या तुम वादे अपने भुलने अशोका आयी थी!या फिर बसंत कि बहार का इंतजार लाई थी आज अशोका मे उससे मुलाकात हुई थी !घण्टो बैठी थी जब मेरी बात हुई थी!!बातो ही बातो मे सब कुछ बोल गई थी!अपनी यादो कि गठरी को खोल गयी थी !!देख के चेहरे को ऐसा एहसास हुआ था !जैसे बसंत कि हरियाली मे कोई पेड़ झड़ा था !!क्या कोई मिला था तुमको इस बीते पतझड मे !या फिर बसंत कि बहार मे कोई छोड़ गया था w!