मेरा कोई इरादा ना था
(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है !मेरा कोई इरादा ना था दिल तोडने का कोई मेरा इरादा ना था !उसको छोड़ने का मेरा कोई इरादा ना था !!छोडकर जायेंगे किया ऐसा वादा ना था !मिलेंगे फिर से हम उसी मोड पर!!ऐसा भी किया उससे कोई वादा ना था!छोड़कर हमे जब वो चल दिये!!फिर से रोकने का मेरा फिर इरादा ना था!मै ना सुलझा सका खुद उलझता गया!वो फसाती गयी मै भी फ़सता गया!!वक्त था आज फिर से जो बदला हुआ!मै भी था उस शहर मे जो ठहरा हुआ!!लोग सुनने भी आये बहुत थे मगर!मेरी आखें मेरा साथ दे ना सकी !!दिल कि बाते जुबा से निकलती गयीं !आखें थकती गयी बस उनके इंतजार मे!!लोग आते गये भीड़ बढती गयी!हम भी फुर्सत मे इंतजार करते गये!!शहर उनके मै था लोग उनके ही थे!वो ना आयी था जिनके मै इंतजार मे!!