Bapu ka Priya Bhajan | Hindi Meaning of Vaishnav Jan to tene kahiye je | Favourite song of Gandhiji

वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर परायी जाणे रे पर- दुख्खे उपकार करे तो ये मन अभिमान ना आणे रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ॥ सकल लोक मा सहुने वंदे निंदा न करे केनी रे वाच काछ मन निश्चल राखे धन- धन जननी तेनी रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ॥ सम-दृष्टी ने तृष्णा त्यागी पर- स्त्री जेने मात रे जिह्वा थकी असत्य ना बोले पर- धन नव झाले हाथ रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ॥ मोह- माया व्यापे नहीं जेने दृढ़ वैराग्य जेना मन मा रे राम नाम शुँ ताली रे लागी सकल तिरथ तेना तन मा रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ॥ वण- लोभी ने कपट- रहित छे काम- क्रोध निवार्या रे भणे नरसैय्यों तेनुँ दर्शन कर्ताँ कुल एकोतेर तारया रे वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ॥ Hello Everyone , गुजरात के आध्यात्मिक कवियों में नरसिंह मेहता शिखर-संत हैं। वह फक्कड़ प्रवृति के थे, परन्तु पारिवारिक दायित्वों से भी बंधे हुए थे। जब वह सिर्फ पांच वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता नहीं रहे। ऐसा कहा जाता है कि कई बार उनकी मदद के लिए भगवान स्वयं विभिन्न रूपों में उनके पास आए थे। पंद्रहवीं शताब्दी के इस शीर्ष-कवि का एक भजन महात्मा गांधी को बहुत प्रिय था। गांधी जी का जीवन इस भजन से बहुत प्रभावित था। यह उनकी दैनिक प्रार्थना का अंग था। प्रस्तुत है इस भजन का गुजराती में उच्चारण और हिन्दी में भावानुवाद: ‘वैष्णव जन तो तेने रे कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे।’ (सच्चा वैष्णव वही है, जो दूसरों की पीड़ा को समझता हो।) ‘पर दु:खे उपकार करे तोये, मन अभिमान ना आणे रे1॥’ (दूसरे के दु:ख पर जब वह उपकार करे, तो अपने मन में कोई अभिमान ना आने दे।) ‘सकल लोक मां सहुने वन्दे, निंदा न करे केनी रे।’(जो सभी का सम्मान करे और किसी की निंदा न करे।) ‘वाच काछ मन निश्छल राखे, धन धन जननी तेनी रे॥2॥’ (जो अपनी वाणी, कर्म और मन को निश्छल रखे, उसकी मां (धरती मां) धन्य-धन्य है।) ‘समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी परस्त्री जेने मात रे।’ (जो सबको समान दृष्टि से देखे, सांसारिक तृष्णा से मुक्त हो, पराई स्त्री को अपनी मां की तरह समझे।) ‘जिह्वा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे॥3॥’ (जिसकी जिह्वा असत्य बोलने पर रूक जाए, जो दूसरों के धन को पाने की इच्छा न करे।) ‘मोह माया व्यापे नहिं जेने दृढ़ वैराग्य जेना मन मां रे।’ (जो मोह माया में व्याप्त न हो, जिसके मन में दृढ़ वैराग्य हो।)’ राम नाम शु ताली रे लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे॥4॥’ (जो हर क्षण मन में राम नाम का जाप करे, उसके शरीर में सारे तीर्थ विद्यमान हैं।) ‘वणलोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे।’ (जिसने लोभ, कपट, काम और क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली हो।) ‘भणे नरसैयो तेनु दर्शन करतां, कुल एकोतेर तार्या रे॥5॥’ (ऐसे वैष्णव के दर्शन मात्र से ही, परिवार की इकहत्तर पीढ़ियां तर जाती हैं, उनकी रक्षा होती है।) सौराष्ट्र (गुजरात) में जन्मे नरसिंह मेहता एक अत्यन्त निर्धन नागर ब्राहृमण थे। एक बार वह निम्न जाति के एक व्यक्ति के घर पर भजन कीर्तन करने गए। इस कारण उनकी बढ़ती लोकप्रियता से ईष्र्यालु कुछ नागर ब्राह्मणों ने उन्हें अपनी जाति से निकाल दिया था। नरसिंह मेहता के इस सुंदर गीत से हमें अनेक शिक्षाएं मिलती हैं । आज आवश्यकता इन्हें जीवन में उतारने की है ।

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